It is necessary to stop this series of indecent statements

Editorial: अमर्यादित बयानों का यह सिलसिला बंद होना जरूरी

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It is necessary to stop this series of indecent statements

It is necessary to stop this series of indecent statements एक-एक शब्द अहमियत रखता है, आप चाहे कितनी भी शिक्षा अर्जित करके क्यों न बैठे हों, महज एक शब्द आपके पूरे परिश्रम पर पानी फेर सकता है। आजकल लोकसभा चुनाव के दौरान नेताओं के जिस प्रकार के बयान सामने आ रहे हैं, वे देश की जनता को शर्मसार कर रहे हैं। भारत एक उदार हृदय देश है और यहां विचार की स्वतंत्रता है, लेकिन ऐसा विचार जोकि जनता को दुख पहुंचाने वाला और उसे अपमानित करने वाला हो, को कैसे स्वीकार्य किया जा सकता है। इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के पूर्व प्रमुख सैम पित्रोदा का नया बयान अपने आप में बेहद तुच्छ एवं भारत के लोगों को घोर अपमानित करने वाला है। पूरा विश्व जानता है कि भारत विभिन्न संस्कृतियों, समाजों, धर्मों और क्षेत्रों का घर है। देश के एक छोर के लोगों का रहन-सहन और उनका शारीरिक स्वरूप दूसरे छोर के लोगों से नहीं मिलता। तब क्या इसका उपहास उड़ाया जाएगा, क्या इसको लेकर बेहद निम्न दर्जे की टीका टिप्पणी की जाएगी। सैम पित्रोदा ने ऐसा ही किया है।

हालांकि अब कांग्रेस के इस पद से वे इस्तीफा दे चुके हैं, लेकिन वे पार्टी में बने हुए हैं। गांधी परिवार के बेहद नजदीकी पित्रोदा के इन बयानों पर कांग्रेस ने कोई जवाब भी नहीं दिया है। क्या यह मान लिया जाए कि ऐसे बयानों को लेकर कांग्रेस आलाकमान की मूक सहमति प्राप्त है।

सैम पित्रोदा ने हाल ही में कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में विरासत  टैक्स का जिक्र कर बवाल कायम कर दिया था। इसके बाद कांग्रेस को सफाई देनी पड़ी थी, तब तक सत्तापक्ष हमलावर हो चुका था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में इसे लेकर लगातार हमले किए। यह मामला अब जैसे-तैसे ठंडा हुआ था कि सैम पित्रोदा ने कांग्रेस के लिए एक और मुश्किल पैदा कर दी है। कांग्रेस खुद को एक धर्मनिरपेक्ष, पंथनिरपेक्ष और क्षेत्रवाद से बाहर रहने वाली पार्टी करार देती है। हालांकि पित्रोदा ने जिस प्रकार से पूर्वोत्तर, दक्षिण और उत्तर भारतीयों के चेहरे-मोहरे की विदेशियों से तुलना की है, वह सोच के निम्न स्तर को दर्शा रही है। यह अपने आप में एक अहम सवाल है कि आखिर पित्रोदा को यह सब तुलना करने की क्या जरूरत पड़ गई। इसके जरिए वह क्या साबित करना चाहते हैं। देश में आम चुनाव जारी हैं, बात मुद्दों की होनी चाहिए और कांग्रेस की ओर से उन मामलों को उठाया जाना चाहिए जोकि मोदी सरकार से जवाब मांगते हों। आखिर सैम पित्रोदा की टिप्पणी से कांग्रेस क्या हासिल कर लेगी। यह सही ही है कि कांग्रेस ने पित्रोदा के इस्तीफे को स्वीकार करने में देर नहीं की है।  

गौरतलब है कि पित्रोदा पहले भी अनेक बाद कांग्रेस के समक्ष इसी प्रकार की मुश्किलें खड़ी करते रहे हैं। वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में सिखों के प्रति जो नफरत फैली थी, और निर्दोष लोगों को अपना जीवन बलिदान करना पड़ा था, उसके संबंध में भी पित्रोदा ने एक स्तरहीन बयान दिया था। उसमें उन्होंने कहा था कि हुआ तो हुआ। वास्तव में कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा ने ये तीन शब्द कहकर भारी गलती की थी। अपराध और आपराधिक व्यक्तिगत मसला नहीं होता है, वह पूरे समाज और पूरे देश के लिए समान रूप से हेय होता है। सिख विरोधी दंगों की बर्बरता पीढिय़ों तक याद रखी जाएगी और यह एक कौम नहीं अपितु पूरे समाज को सालती रहेगी। कांग्रेस ने कभी भी इस बात को स्वीकार नहीं किया है कि सिख विरोधी दंगे एक घोर अपराध था और इनमें वही लोग शामिल थे, जोकि कांग्रेस के कर्णधारों के आसपास डोलते थे। जुर्म की कालिख कभी नहीं छूटती और वह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है, इसका उदाहरण यह कांड है।

बीते दिनों पुंछ में वायुसेना पर आतंकी हमले को लेकर भी पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चरणजीत सिंह चन्नी ने अनुचित टिप्पणी की थी। उन्होंने इसे केंद्र सरकार का स्टंट बताया था। यह कितनी बेतुकी बात है कि वीर जवानों का रक्त बह गया, वे देश पर शहीद हो गए। लेकिन एक नेता इसे स्टंट बता रहा है। हालांकि ऐसे बयानों को वापस लेने के बजाय उन पर सफाई दी जाती है और यह भी कहा जाता है कि राजनीति नहीं होनी चाहिए। वास्तव में सभी के लिए यह आवश्यक है कि वे मर्यादा का पालन करें। शब्द किसी व्यक्ति के अपने होते हैं, उनका एक बार संधान हो जाए तो वे वापस नहीं लिए जा सकते। हालांकि उनसे नुकसान हो चुका होता है। कांग्रेस नेताओं समेत सभी दलों को चाहिए कि वे ऐसे बोल ही सामने लेकर आएं जोकि समाज हित में हों और उनसे मतदाता को अपना मानस बनाने में सहयोग प्राप्त हो। 

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